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बिजनेस

₹21,000 से शुरू हुई टाटा ग्रुप कैसे बनी दुनिया की सबसे ताकतवर कंपनी, जमशेदजी से रतन टाटा तक की पूरी कहानी

Harshit Mishra
Last updated: 11/10/2024 12:38 am
Harshit Mishra
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अगर आप इंडिया में रहते हैं तो आपका दिन में कभी ना कभी टाटा ग्रुप ऑफ कंपनीज की किसी ना किसी प्रोडक्ट से पाला जरूर पड़ता होगा, सड़क पर दौड़ती हुई गाड़ियों पर नजर डालें तो टाटा मोटर्स, हवा में उड़ते हुए एयरोप्लेन को देखें तो एयर इंडिया पर नजर जाती है और मुंबई का आइकॉनिक ताज होटल तो पूरी दुनिया में मशहूर है जिसे टाटा ग्रुप ही चलता है

Contents
टाटा के अंडर 29 कंपनियां है₹21,000 से शुरू हुआ टाटा का पहला कारखानानागपुर में खोली पहली कॉटन मीलनागपुर में कॉटन मील बनाने का कारणजमशेद जी ने वर्कर से काम करवाने के लिए अपनाया अनोखा तरीकाजमशेद जी टाटा ने सिल्क इंडस्ट्री कैसे स्थापित कीजमशेद जी टाटा के 4 सपनेभारत का पहला 5 सितारा ताज होटल बनने की कहानीटाटा स्टील बनने की कहानीटाटा ने बनाया इंडिया की पहली हाइड्रो इलेक्ट्रिक कंपनीटाटा ने बनाया इंडिया का पहला साइंस कॉलेजवर्कर्स को दिया वर्ल्ड क्लास फैसिलिटीटाटा ने बनाया इंडिया की पहली एयरलाइनइंडिया की पहली केमिकल फैक्ट्रीटाटा मोटर्स की शुरुवातइंडिया की पहली आईटी कंपनी बनायीटाटा टी की शुरुवातरतन टाटा का आगमनरतन टाटा ने बनायी देश की पहली मेक इन इंडिया काररतन टाटा ने बड़े बड़े ब्रांड को खरीदारतन टाटा की मौत के बाद कौन बनेगा टाटा का नया वारिसनिष्कर्ष

पावर से लेकर फैशन तक और चाय से लेकर नमक तक हर जगह टाटा ग्रुप ऑफ कंपनीज का ही राज है पूरे इंडिया में छोटी बड़ी 100 से ज्यादा कंपनीज हैं जो टाटा ग्रुप के अंडर आती हैं, अब यहां आपको लगता होगा कि यह सब सक्सेस रतन टाटा की हिम्मत और विजन से आई है हां उनका कंट्रीब्यूशन तो जरूर है लेकिन यह एंपायर जो आज हम देखते हैं इसकी कामयाबी की कड़ियां 150 साल पीछे जाकर मिलती है आज की हम इस कहानी को खोलेंगे और जानेंगे कि कैसे एक विजनरी ने अपने सपनों को सच कर दिखाया और टाटा ग्रुप को बनाया एक ग्लोबल पावर हाउस

टाटा के अंडर 29 कंपनियां है

टाटा ग्रुप के प्रोडक्ट्स 150 से ज्यादा देशों में एक्सपोर्ट होते हैं जबकि 100 से ज्यादा देशों में टाटा ग्रुप अपने ऑपरेशंस खुद मैनेज करता है, 2024 के एस्टिमेट्स के मुताबिक टाटा ग्रुप का कैपिटल 403 बिलियन डॉलर्स है जो कि इंडियन करेंसी में 33500 अरब रुपए है, गाड़ियां हो या ज्वेलरी, नमक हो या पत्ती, एयरलाइन इंडस्ट्री से लेकर रियल स्टेट सर्विस तक टाटा ग्रुप 24 से ज्यादा प्रोडक्ट्स या सर्विसेस में अपने पैर जमाए बैठा है।

₹21,000 से शुरू हुई टाटा ग्रुप कैसे बनी दुनिया की सबसे ताकतवर कंपनी, जमशेदजी से रतन टाटा तक की पूरी कहानी
Image: Quora

₹21,000 से शुरू हुआ टाटा का पहला कारखाना

कामयाबी के इस सफर का आगाज रतन टाटा के दादा नहीं बल्कि परदादा जमशेद जी टाटा ने आज से 156 साल पहले सिर्फ ₹21000 रुपयों से किया था जमशेद जी अपने पिता के साथ कॉटन की ट्रेडिंग का काम करते थे और 1868 में जब वह सिर्फ 29 साल के थे तब उन्होंने अपनी खुद की ट्रेडिंग कंपनी की बुनियाद रखी जो कॉटन वह बेचते थे वह ज्यादातर एक्सपोर्ट होती थी और उसमें से कुछ टेक्सटाइल मिल्स खरीद कर कपड़े के रूप में बेंचते थे

इस तरह जमशेद जी को आईडिया आया कि कॉटन बेंचने के साथ-साथ वह एक टेक्सटाइल मिल भी लगा ले, लेकिन मिल लगाने के लिए बहुत ज्यादा इन्वेस्टमेंट की जरूरत थी और इतने पैसे एक नए बिजनेस में लगाना काफी रिस्की था उस वक्त चिंच पोकली में एक ऑयल मिल काफी नुकसान में जा रही थी और अल्टीमेटली वो बैंकरप्ट हो गई तो उन्होंने सस्ते दामों वो ऑयल मिल खरीदी और उसको कॉटन मिल में कन्वर्ट करके चलाने लगे उस मिल को अलेक्जेंड्रा का नाम दिया गया दो सालों के बाद उन्होंने व मिल जो नुकसान में जा रही थी उसको प्रॉफिट में बेचा और एक नए मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने जितने पैसे जमा कर लिए

नागपुर में खोली पहली कॉटन मील

उस वक्त बॉम्बे कॉटन की मार्केट का गढ़ था जिसको Cottonopolis of India भी कहा जाता था, जमशेद जी का ताल्लुक खुद भी बॉम्बे से ही था लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपनी नई कॉटन मिल बॉम्बे से 770 किमी दूर नागपुर में एस्टेब्लिश की इस नई मिल को एंप्रेस मिल का नाम दिया गया जिस पर बम्बे के लोगों ने उनको कॉटन की मार्केट से इतना दूर मिल बनाने पर बहुत ताने भी दिए किसी को भी यह समझ नहीं आ रहा था कि जब बम्बे कॉटन की मार्केट का हब है तो जमशेद जी ने नागपुर में मिल क्यों एस्टेब्लिश की पर वक्त ने साबित किया कि जमशेद जी का यह फैसला बहुत अच्छा था।

इसे भी पढ़ें- Indus Water Treaty: भारत बंद करने वाला है पाकिस्तान जाने वाली नदियों का पानी, जाने क्या है वजह

नागपुर में कॉटन मील बनाने का कारण

पहला कारण – यह कि रॉ मटेरियल यानी कि कॉटन की फसलें ज्यादातर नागपुर के करीब होती थी जिसकी वजह से रॉ मटेरियल की सप्लाई का इनको कोई दिक्कत नहीं होता था

दूसरा कारण – पानी की सप्लाई कॉटन को कपड़ा बनाने के प्रोसेस के दौरान बहुत सारा पानी चाहिए होता है और नागपुर के पास कई नदियां और झील हैं जिनकी वजह से पानी की सप्लाई की भी कोई दिक्कत नहीं थी,

तीसरा कारण – मजदूरों की अवेलेबिलिटी क्योंकि बम्बे जैसे शहरों में मजदूरों की डिमांड ज्यादा थी इसी वजह से वहां अक्सर मजदूरों की शॉर्टेज रहती थी और शहर में कॉस्ट ऑफ ज्यादा होने की वजह से वहां पर उनका रेट भी ज्यादा होता पर नागपुर में बेरोजगारी ज्यादा होने की वजह से यहां रेट बहुत कम थे और अवेलेबिलिटी ज्यादा अब क्योंकि इस एरिया में पहले कोई कॉटन मिल नहीं थी इसी वजह से वहां के मजदूर ज्यादा ट्रेंड नहीं थे उन पर बहुत मेहनत करने की जरूरत थी

जमशेद जी ने वर्कर से काम करवाने के लिए अपनाया अनोखा तरीका

जमशेद जी ने देखा कि वर्कर्स काम पर ज्यादा ध्यान नहीं देते बाद बात पर छुट्टी कर लेते हैं और ज्यादातर दिनों में ऐसा भी होता था कि 20% से ज्यादा वर्कर छुट्टी पर होते थे यह बात जमशेद जी टाटा को बहुत परेशान किए रखती थी लेकिन उन्होंने इस परेशानी के हल के लिए आज से 150 साल पहले एक ऐसा तरीका अपनाया जो आज के मॉडर्न जमाने में सोचना भी मुश्किल है, उन्होंने वर्कर्स को डांटने और उनकी सैलरी काटने के बजाय उन्हें बढ़िया फैसिलिटी देने का फैसला किया

उन्होंने एक ऐसी स्कीम इंट्रोड्यूस की कि उनकी फैक्ट्रीज के तमाम वर्कर्स को रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी मिलेगी उनकी मेडिकल इंश्योरेंस भी की गई और उनके एंटरटेनमेंट के लिए स्पोर्ट्स डे और फैमिली डे भी रखे गए, ज्यादा बेहतर परफॉर्म करने वाले वर्कर्स को सबके सामने इनाम भी दिया जाता था यानी यह सब कुछ आज के दौर में तो समझ आता है लेकिन उस दौर में ऐसा करना किसी ख्वाब से कम नहीं था और मजे की बात यह कि उनकी यह स्कीम काम भी कर गई वर्कर्स खुद को वैल्यूड फील करने लगे वह कंपनी को अपनी कंपनी समझकर काम करने लगे

जमशेद जी का मानना था कि इंडिया को मजबूत बनाने के लिए हर चीज का इंडिया में ही मैन्युफैक्चर होना बहुत जरूरी है और अपना यही मिशन लिए वह कोशिश करते गए उन्होंने  कंपनीज लगाना शुरू कर दी

जमशेद जी टाटा

जमशेद जी टाटा ने सिल्क इंडस्ट्री कैसे स्थापित की

उस वक्त सिल्क बहुत प्रीमियम कपड़ा समझा जाता था और उसमें सबसे ए क्लास सिल्क फ्रांस से इंपोर्ट होता था, फ्रेंच सिल्क वार्म पूरी दुनिया में बेहतरीन सिल्क प्रोड्यूस करने के लिए जाने जाते थे जमशेद जी फ्रांस गए और वहां से फ्रेंच सिल्क वार्म की ब्रीड इंडिया में लेकर आए लेकिन परेशानी ये थी कि यह सिल्क वार्म सिर्फ यूरोप के क्लाइमेट में ही अच्छी प्रोडक्शन देने की काबिलियत रखते थे,

इंडिया में उनका सरवाइव करना काफी मुश्किल था, इसलिए उन्होंने बेंगलोर में एक सिल्क फर्म एस्टेब्लिश किया जहां का क्लाइमेट इस खास सिल्क वार्म के लिए काफी बेहतर तो था लेकिन परफेक्ट नहीं था शुरुआत में उनको काफी परेशानी का सामना करना पड़ा

फ्रेंच सिल्क वार्म में अक्सर बीमारियां फूट पड़ती थी इन परेशानियों को ठीक करने के लिए पहली बार कंट्रोल्ड एनवायरमेंट में सिल्क वार्म की फार्मिंग का कांसेप्ट भी जमशेद जी टाटा ही लेकर आए खुशकिस्मती से ये एक्सपेरिमेंट काम कर गया और इस तरह जमशेद जी ने टाटा सिल्क के रूप में इंडिया को बेहतरीन सिल्क बनाने के काबिल बना दिया आज इंडिया दुनिया के सबसे बड़े सिल्क प्रोड्यूसर्स में से एक है और यह सब उन पहले एक्सपेरिमेंट्स इनोवेशंस और रिसर्च की वजह से मुमकिन हो पाया है

जमशेद जी टाटा के 4 सपने

उस वक्त इंडिया में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का राज था, जमशेद जी ने फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी को टारगेट किया और 1885 में पॉन्डिचेरी में एक कंपनी बनाई जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ इंडियन टेक्सटाइल्स को फ्रेंच कॉलोनी के बीच इंट्रोड्यूस कराना था, लेकिन यह आइडिया कम डिमांड की वजह से कामयाब नहीं हुआ, कॉटन के अलावा वह अपना नेटवर्क और भी बढ़ाना चाहते थे,

Image: जमशेदजी टाटा फाइल फोटो

वह चाहते थे कि इंडिया में जो भी चीजें इस्तेमाल होती हैं वो पूरी तरह इंडिया में ही मैन्युफैक्चर हो उनके टोटल चार ख्वाब थे आयरन और स्टील की मैन्युफैक्चरिंग होटल एजुकेशन और हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट  लेकिन सिर्फ होटल ही वह ऐसा सपना था जिसको वह पूरा होते देख पाए और यह था द ताजमहल होटल जो 1903 में कंप्लीट हुआ था

भारत का पहला 5 सितारा ताज होटल बनने की कहानी

जब ताज महल होटल पहली बार खोला गया तो यह इंडिया का पहला होटल था जिसमें इलेक्ट्रिसिटी कनेक्शन था इसके अलावा अमेरिकन फैंस, जर्मन एलीवेटर्स और टर्किश बाथ भी इसमें इंस्टॉल किए गए शुरुआत में ताजमहल होटल के रूम्स का रेंट सिर्फ ₹13 हुआ करता था जिसमें अटैच बाथरूम भी शामिल था ताजमहल होटल खोलने के पीछे क्या वजह थी इसके बारे में कई कहानियां मशहूर हैं कहा जाता है कि एक बार जमशेद जी को बंबई के मशहूर वाटसंस होटल जिसको आज एस्प्लेनेड मेंशंस भी कहा जाता है में जाने की परमिशन नहीं मिली क्योंकि वो सिर्फ ब्रिटिशर्स के लिए बनाया गया था

image: Moneycontrol

इसी वजह से उन्होंने ताजमहल होटल बनाने का फैसला किया लेकिन इस कहानी को चार्ल्स एलन नामी एक राइटर ने झूठा करार दिया और लिखा कि जमशेद जी इतनी छोटी सी बात को दिल पर नहीं ले सकते थे बल्कि उनको अपने शहर बंबे से काफी लगाव था और वह अपने होम टाउन को एक गिफ्ट देना चाहते थे, ताजमहल होटल को इस तरह से डिजाइन किया गया कि उसके हर रूम से समंदर का नजारा इस तरह दिखाई दे कि ऐसे मालूम हो कि होटल समंदर के ऊपर फ्लोट कर रहा है।

टाटा स्टील बनने की कहानी

उस दौर में ब्रिटिशर्स तेजी से पूरे ब्रिटिश इंडिया में रेलवे नेटवर्क बिछा रहे थे, जिसमें लगने वाला हजारों लाखों टन लोहा ब्रिटेन से इंपोर्ट किया जाता था, जमशेद जी का ख्वाब था कि वह इंडिया में ही स्टील मैन्युफैक्चर करें इसके चलते उन्होंने पूरे भारत में स्टील बनाने के लिए आयरन रिजर्व्स को ढूंढना शुरू कर दिया, 17 साल तक यह तलाश जारी रही और आखिर बंगाल में आयरन रिजर्व्स मिल गए 1895 पर स्टील प्लांट का आगाज कर दिया गया

लेकिन बदकिस्मती से स्टील बनते हुए देखना जमशेद जी के नसीब में नहीं था, 1904 में जमशेद जी की डेथ हो गई और उनके अधूरे मिशन को आगे बढ़ाने के लिए उनके बेटे दोराबजी टाटा को मैदान में आना पड़ा इसी मिशन को आगे बढ़ाते हुए 1907 में आयरन एंड स्टील कंपनी एस्टेब्लिश कर दी गई जिसे आज टाटा स्टील के नाम से जाना जाता है, यह एशिया का सबसे पहला स्टील प्लांट था और वर्ल्ड वॉर 1 में इसी प्लांट के जरिए ब्रिटिशर्स ने अपनी स्टील्स की डिमांड को पूरा किया दोराबजी टाटा की अगुआई में टाटा ग्रुप तेजी से तरक्की करने लगा।

टाटा ने बनाया इंडिया की पहली हाइड्रो इलेक्ट्रिक कंपनी

1910 में में टाटा पावर के नाम से इंडिया की पहली हाइड्रो इलेक्ट्रिक कंपनी एस्टेब्लिश कर दी गई जहां पर नेचुरल वॉटरफॉल्स और आर्टिफिशियल झील की मदद से इलेक्ट्रिसिटी जनरेट होने लगी और कई बड़ी इंडस्ट्रीज को इसी पावर प्लांट की तरफ से इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई करना शुरू कर दी गई

टाटा ने बनाया इंडिया का पहला साइंस कॉलेज

उस वक्त क्योंकि साइंस पूरी दुनिया में तरक्की कर रही थी और टाटा ग्रुप इंडिया को किसी तरह पीछे नहीं देखना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बेंगलोर की बुनियाद रखी ताकि साइंस और रिसर्च की फील्ड में दुनिया का मुकाबला किया जा सके और इसी इंस्टिट्यूट ने इंडिया को अपना पहला कंप्यूटर और पहला एयरक्राफ्ट बनाने में काफी मदद भी की

वर्कर्स को दिया वर्ल्ड क्लास फैसिलिटी

टाटा ग्रुप खुद ही तरक्की नहीं कर रहा था बल्कि वह वर्कर्स के लिए ऐसी फैसिलिटी ला रहा था जिसे दुनिया में कोई भी और कंपनी नहीं अपना रही थी वर्कर्स की शिफ्ट को 8 घंटे किया गया ताकि वह जल्दी फ्री होकर घर वापस जाएं और अपनी फैमिली के साथ वक्त गुजारे और आज टाटा की यह पॉलिसी जो आज से 100 साल पहले इंट्रोड्यूस करवाई गई थी अभी पूरी दुनिया में काम कर रही है, यहां दोराबजी टाटा की जिंदगी को भी फुल स्टॉप लग गया 1932 में उनकी मौत हो गई लेकिन इन 28 सालों में उन्होंने टाटा ग्रुप को स्टील, पावर, साइंस और कई चीजों से नवाजा था

टाटा ने बनाया इंडिया की पहली एयरलाइन

दोराबजी के बाद टाटा ग्रुप की जिम्मेदारियां उनके एक फैमिली मेंबर जेआरडी टाटा के हाथों में आ गई जेआरडी टाटा एविएशन में एक्सपीरियंस रखते थे, इसीलिए कंट्रोल संभालते ही उन्होंने इरादा कर लिया कि वह इंडिया को अपनी एयरलाइन देंगे, जेआरडी टाटा ने टाटा एयरलाइंस की बुनियाद रखी जो किसी इंकलाब से कम नहीं था, भारत को अपनी एयरलाइन मिल चुकी थी जिसकी पहली फ्लाइट के पायलट खुद जेआरडी टाटा थे और इंडिया के फर्स्ट कमर्शियल पायलट होने का खिताब भी अपने नाम किया, लेकिन 1947 में इंडिपेंडेंस मिलने के बाद इंडिया में मौजूद काफी इंडस्ट्रीज को इंडियन सरकार ने अपने कंट्रोल में ले लिया जिसमें टाटा एयरलाइन भी थी और इसका नाम बदलकर एयर इंडिया रख दिया गया

इंडिया की पहली केमिकल फैक्ट्री

जेआरडी टाटा ने महसूस किया कि भारत में केमिकल इंडस्ट्रीज तो मौजूद हैं, लेकिन उनको अपने काम पूरे करने के लिए ज्यादातर इंपॉर्टेंट केमिकल्स दूसरे देशों से इंपोर्ट करने पड़ते हैं जैसा कि ग्लास, साबुन और सर्फ जैसे प्रोडक्ट्स बनाने के लिए कास्टिक सोडा और सोडा ऐश की जरूरत थी मगर यह केमिकल्स इंडिया में प्रोड्यूस नहीं किए जाते थे उनको दूसरे देशों से इंपोर्ट किया जाता था, इसी वजह से 1939 में टाटा केमिकल्स के नाम से एक कंपनी खोली गई जो इंडिया के लिए तमाम केमिकल्स खुद प्रोड्यूस करती थी, इस कंपनी ने फर्टिलाइजर और दूसरे सेक्टर्स में इंडिया को ग्रो करने में काफी मदद की

टाटा मोटर्स की शुरुवात

उसके बाद एक बार फिर से जेआरडी टाटा ने ट्रांसपोर्टेशन का रुख किया ट्रक्स और इंजन बनाने वाली एक कंपनी की शुरुआत की जिसे आज हम टाटा मोटर्स के नाम से जानते हैं, टाटा मोटर्स कई मॉडल्स की कार, ट्रक और दूसरी व्हीकल्स बनाता है, टाटा मोटर्स आज भी इंडिया की मोटर इंडस्ट्री में एक बड़ा नाम है और यहां से गाड़ियां साउथ अफ्रीका भी भेजी जाती हैं

इंडिया की पहली आईटी कंपनी बनायी

उसके बाद 1960 में जब कंप्यूटर्स और टेक्नोलॉजी की तरफ दुनिया बढ़ने लगी तो टाटा ग्रुप भी पीछे ना रहा उन्होंने इंडिया की सबसे पहली सॉफ्टवेयर और आईटी कंपनी टीसीएस यानी टाटा कंसल्टेंसी सर्विस बना दी

टाटा टी की शुरुवात

1984 में जेआरडी टाटा ने महसूस किया कि भारत में लोग चाय बहुत शौक से पीते हैं इसीलिए टाटा ग्रुप ने चाय की डिमांड को पूरा करने के लिए भी कदम उठाया उन्होंने टाटा टी के नाम से एक कंपनी शुरू की और वह कंपनी दुनिया की चाय बनाने वाली कंपनीज में आज एक बड़ा नाम है।

रतन टाटा का आगमन

इसके साथ-साथ जेआरडी टाटा अब बूढ़े हो चुके थे इसीलिए उन्होंने बिजनेस की कमांड संभालने के लिए अपनी जिंदगी में ही अपने एक फैमिली मेंबर को यूएसए से इंडिया बुलाया, यह फैमिली मेंबर कोई और नहीं बल्कि सर रतन टाटा थे शुरुआत में रतन टाटा को सिर्फ टाटा स्टील में जिम्मेदारियां दी गई और उन्होंने टाटा स्टील को लॉस से निकालकर प्रॉफिट तक पहुंचाया इससे जेआरडी टाटा बहुत इंप्रेस हुए और इसी वजह से उन्होंने 1991 में रतन टाटा को टाटा ग्रुप का चेयरमैन बना दिया।

रतन टाटा ने बनायी देश की पहली मेक इन इंडिया कार

रतन टाटा क्योंकि मॉडर्न एरा के आदमी थे इसीलिए वह हर चीज में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना चाहते थे उन्होंने चेयरमैन बनते ही यह सोचा कि टाटा मोटर्स कार और ट्रक तो बनाता ही रहा है लेकिन आज भी कोई एक ऐसी गाड़ी नहीं है जिसकी कंप्लीट मैन्युफैक्चरिंग इंडिया में होती हो यानी कुछ ना कुछ पार्ट्स बाहर से इंपोर्ट करने ही पड़ते थे इसीलिए टाटा मोटर्स ने एक नया कार मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया और 1998 में इंडिया की पहली कार इंडिका को लॉन्च किया गया

tata indica launch
Image: GoMechanic

टीसीएस जो सिर्फ पहले बेसिक डाटा एंट्री और मैनेजमेंट का काम करती थी उसे सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट पर शिफ्ट कर दिया गया और उसे दुनिया की लीडिंग सॉफ्टवेयर कंपनीज की लिस्ट में ला खड़ा किया

रतन टाटा ने बड़े बड़े ब्रांड को खरीदा

रतन टाटा के अंडर टाटा ग्रुप ने दुनिया के मशहूर ब्रांड्स को खरीदना शुरू कर दिया, टाटा ने उस वक्त की मशहूर टी कंपनी टेटले टी को एक्वायर कर लिया टाटा स्टील ने कोरस ग्रुप को और टाटा मोटर्स ने जैगवार और लैंड रोवर जैसी बड़ी कम्पनी को खरीद लिए, 2012 में रतन टाटा ने अपनी बढ़ती उम्र के चलते टाटा के चेयरमैन के पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी जगह पर सायरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप का सीईओ बना दिया जिनकी 2022 में एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई और आज रतरंजन चंद्रशेखरन टाटा ग्रुप के सीईओ है।

रतन टाटा की मौत के बाद कौन बनेगा टाटा का नया वारिस

रतन टाटा जिन्होने टाटा कंपनी को दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई थी उसी रतन टाटा की मौत 9 अक्टूबर 2024 को मुंबई के एक हॉस्पिटल में हो गया वे काफी दिनों से बीमारी से ग्रशित थे, रतन टाटा की मौत के बाद टाटा ग्रुप का नया वारिस उनके सौतेले भाई नोवेल टाटा होंगे लेकिन अब देखना ये है कि क्या नोवेल टाटा अपने बड़े भाई की तरह ही टाटा ग्रुप को ऊंचाइयों तक ले जा पाएंगे या नहीं।

निष्कर्ष

टाटा ग्रुप आज भी तेजी से तरक्की कर रहा है और जिंदगी के हर मोड़ में सिर्फ इंडिया ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए अपना किरदार अदा कर रहा है यह किसी एक शख्स की मेहनत नहीं बल्कि 150 साल तक कई लोगों के खून पसीने का नतीजा है उम्मीद है कि आपको टाटा ग्रुप की कहानी पसंद आई होगी।

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By Harshit Mishra
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हर्षित मिश्रा इस वेबसाइट के टेक्निकल चीफ एडिटर और राइटर हैं, इन्होंने कंप्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है और वेबसाइट डेवलपमेंट और कंटेन्ट मार्केटिंग में 6+ वर्षों का अनुभव है।
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